भारत को विकसित होने से रोकता यूरोप    

                   विश्व के सभी देशों की भौगौलिक एवं राजनीतिक विचार अलग अलग है। यूरोप की महाशक्तियां कभी नहीं चाहेंगी कि यूरोप या एशिया का कोई भी देश महाशक्तियों की बराबरी पर खड़े हो। खासकर जर्मनी/जापान/रुस/अमेरिका/फ्रांस/ब्रिटेन जैसे देश हमेशा कमजोर या आश्रित देनों को आपस में लड़ा कर भय की राजनीतिक करते हूए अपना व्यवसाय करते है। यूरोपीय देश भारत जैसे विकासशील देश में अपार संभावनाएं देखती है। 

  आज का दौर तकनीकी युग है इस तकनीकी युग तकनीकी हस्तांतरण जैसा व्यवसाय तब किया जाता है जब वो देश उस तकनीक को और उन्नत बना लेता है। विदेशी व्यापार तभी करते है। विकासशील देश हमेशा तब ठगे जाते है जब दो यूरोपीय शक्ति दो विकासशील देशों में अलग अलग समझौता करते है । प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष संधि दो देशों की शक्ति सामर्थ्य व राजनीतिक शक्ति पर निर्भर करता है। विदेशी व्यापार हमेशा अपनी कूटनीति पर निर्भर रहता है। इसलिए यूरोपीय शक्ति हमेशा अपने व्यापारिक साझेदार को भय से चिन्तित करते है। इस भय में कुछ ऐसी भी शक्तियां शामिल हो जाती है जिससे दोनों विकासशील देश अपनी सीमा व नागरिकों की सुरक्षा के लिए ऋण तक  लेते है। 

 

ऐसी स्थिति में जब भी कोई देश विश्व बैंक या अन्तर्राष्ट्रीय संगठन से ऋण लेकर अपने देश का विकास करते हैं तब उस कर्ज का बोझ वहाँ के नागरिकों पर पड़ता है और ये बोझ बीस से पचास तक भी रह सकता है इस दौरान उस देश में सियासत उलटफेर होता रहता है 

सियासती उलटफेर में देश की समृद्धि लगभग ऋण भुगतान अवधि का दोगुना से अधिक हो जाता है और पीछड़ जाता है।

हमेशा से भारत की गहरी दोस्ती रुस से रही है इस दौरान जब जब भारत नये दोस्त बनाने की सोची है तब तब रुस का विश्वास भारत से कम होता गया है।

प्रतिस्पर्धा में जब भारत ने चंद्रयान 2 छोड़ा तब रुस ये उपलब्धि अपने देश के नाम करना चाहा यही कारण है चंद्रयान 2 के जबाब में रुस ने लूमा नामक यान छोड़ा। ये बात अलग है कि भारत

कि भारतीय तकनीक सफल रही। जब भारत ने अमेरिका से दोस्ती कर रक्षा सौदा तय किया तब रुस ने डूबते पाकिस्तान को हथियार देने का सौदा करार किया जिसे भारत ने आर्थिक तंत्र से समझौता रद्द करा दिया और रुस और अमेरिका से दोनो सौदा अपने हीत के लिए कर लिया। समझने की जरूरत है कि कौन सा देश किस देश का कठपुतली बना है। अगर रुस भारत भाई भाई है तो पाकिस्तान अमेरिका भाई भाई क्यों नहीं हो सकता!

भाई भले ही न बने लेकिन व्यापारिक साझेदार तो बन ही सकता है। व्यापारिक समझौता से ही आगे बढ़ सामरिक समझौता पर कोई भी देश निर्भर हो जाता है

भारत का रुख हमेशा शांति और विकास पर निर्भर रहता है लेकिन हमारे पड़ोसी देश का संबध उस देश से है जिस देश के पड़ोसी दुश्मन से भारत का है। सबसे बड़ी बात ये है कि हथियारों की होड़ में विकासशील देश आपस में दुश्मन बन जाते है तकनीकी युद्धों की बात होने लगती है सामरिक शक्ति का प्रदर्शन होने लगता है यहाँ तक कि दो देश या उससे अधिक देशों का युद्धोभ्यास होने लगता है। ये सभी खेल मनोवैज्ञानिक ढ़ग से विकासशील देशों को ज्यादा से ज्यादा हथियार देना, कर्ज में डालना और अपने मनमाफिक योजनाओं पर काम कराना है

तो है ही, बल्कि हथियारों की होड़ को बढ़ावा देना भी है।

आज हम रुस और अमेरिका की बात करें क्यों कि रुस की तेल निर्यात को लेकर भारत पर 50℅ तक का टैरिफ अमेरिका ने लगाया विश्व संगठन ने नहीं लगाया। अमेरिका अभी भी अपनी शक्ति का उपयोग रुस के कंधे पर रखकर घरेलू उत्पाद, खाद्य पदार्थ, इलेक्ट्रॉनिक, इलेक्ट्रिक जैसे सामानों पर 50℅ तक टैरिफ भारत पर लगाया है जबकि खुलकर कह रहा है कि रुसी तेल के निर्यात की वजह से भारत को बहुत फायदा हो रहा है उस तेल निर्यात के लाभ से रुस को आर्थिक मदद मिल रहा है जिसकी वजह से रुस यूक्रेन युद्ध को रोकने में अमेरिका विफल रहा है। 

         भारतीय इतिहास को देखा जाये तो रुस भारत का सैन्य सामग्री के साथ साथ संकट के क्षण में हमेशा साथ खड़ा रहा वही अमेरिका से दूरी रहा। अमेरिका भारत का चिरप्रतिद्वन्दी दुश्मन पाकिस्तान के साथ रहा। आज भी पाकिस्तान की तरफ ही है। 

      यूरोप की नीति रही है भय फैलाओ, अलगाववादी तंत्रों को मजबूत करो, धर्म और मानवाधिकार के उल्लघंन में फंसाये रहो ताकि वो कभी भी विकास की धारा अपना ही न सके। बावजूद भारत के पूर्व सरकारें जिनपर बंटवारा और मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप लगता रहा वो भारत के समृद्धि के लिए इशरो जैसी संस्था की नीव रखी जो आज मील का पत्थर साबित हो रही है। तमाम अनुसंधान केंद्र खोले गये चाहे कृषि हो या चिकित्सा का क्षेत्र ही क्यों न हो।    

      प्रतिस्पर्धा युग में भारतीय विकास की जो धारा है उसपर विचार करना होगा। सरकारी सेक्टर बंद करने के बजाय उसे मजबूत स्थिति में लाने का प्रयास करना होगा। चिकित्सा और विज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान करने के लिए योग्य को मौका देने के साथ साथ सहयोग भी देने की जरूरत है। सड़क बनेगी फिर बिगड़ेगी ये दौर चलता रहेगा। परन्तु डीआरडीओ की जो उपलब्धि विगत वर्षों में देखने को मिला उससे हम कह सकते है कि हमारे यहाँ होनहार तेजस्वी युवाओं का हौसला बुलंद है भारत का भविष्य सुरक्षित हो सकता है। इसके लिए मौजूदा सरकार को अपने नीति में परिवर्तन करना बेहद आवश्यक है। 

                                  जय हिंद

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