फक्कड़ के फेर में फुफ्फा
मनसौखी अपने घर से बाजार सब्जी खरीदने जा रहा था तभी उसकी नज़र फक्कड के फूफा पर पड़ी | फक्कड़ के फूफा एक नंबर के भक्त, वो मांसहारी चीज को देखते ही बवाल कर देते थे लेकिन उस दिन मनसौखी जो देखा वो देखते ही दंग रह गया वो सब्जी लाना भूल गया और अपने दूकान पर चला गया | सौभाग्य से उसी समय फक्कड़ आ गया | सामने फक्कड़ को देखते ही मनसौखी जोर से आवाज़ देकर बुलाया |
फक्कड़- क्या बात है मनसौखी भाई इतना जोर से आवाज़ क्यों दिए !
मनसौखी- बैठो फक्कड़ भाई कुछ पूछना है
फक्कड़- हाँ हाँ पूछो ( उत्सुकता se)
मनसौखी- ये बताओ फक्कड़, तुम्हारे फुफवा को कुछ हुआ है क्या ?
फक्कड़- नहीं तो ! क्या हुआ ? (आश्चर्य से)
मनसौखी- यार फक्कड़, जब जब तुम्हरे फूफा तुम्हारे घर आते थे तब तब गरियाते हुए जाते थे
फक्कड़-अबे छोड़ भी उनकी बात , उनकी बात और घोड़े की पाद , दोनों एक ही समान
मनसौखी- मतलब वो नहीं फक्कड़ भाई
फक्कड़- तो क्या बात है ?
मनसौखी- यार आज फूफवा को ललजिया की ठेले से आधा दर्जन अंडा खाते देखें है | एक तरफ तो धरम के नाम पर गरियाते है उधर चौराहे पर खुल्लम खुल्ला अंडा भिड़ाये जा रहे थे !
फक्कड़- वो हो ...... ये बात है। अरे मनसौखी भाई तुम नहीं हो
मनसौखी- बताओगे या सिर्फ जुमला बकोगे
फक्कड़- मनसौखी भाई दरअसल, कुछ महीने पहिले फूफा बहुत बीमार हो गए थे
मनसौखी- क्या हो गया था फुफवा को ?
फक्कड़- अरे हमारे फूफा नवरात्रि में नौं दिन निराजल व्रत रहे
मनसौखी- नौ दिन बिना अन्न जल के रहे क्या
फक्कड़- हाँ, फुफ्फा पर साक्षात् देवी आ गयी थी, लगले पगलन नियन हरकत करे |
मनसौखी- फुफवा पर जब देवी आयी होंगी तो पूरा गावं चढ़ावा दिया होगा !
फक्कड़- हाँ , जब पूरा गावं चढ़ावा दे दिया तब देवी माई अपने आप चली गयी
(फक्कड़ ये बात बोलकर हंस दिया )
मनसौखी- हाँ भाई देवी माई कोई एग्रीमेंट थोड़े ही लिखवाई है जो हमेश इन्हीं के ऊपर रहेंगी
फक्कड़- जिस दिन देवी माई गयी उसी शाम फुफवा का तबियत गड़बड़ा गया |
मनसौखी- अरे बाप रे, फूफा व्रत तोड़े या वैसे ही हॉस्पिटल ले गए
फक्कड़- ज्यादा पंडिताई करने का नतीजा था
मनसौखी- हाँ भाई, भगवान् कोई बोलते तो है नहीं, की मेरे लिए प्राण दे दो
फक्कड़- बकलोल का यही पहचान है न मनसौखी भाई
मनसौखी- आगे क्या हुआ?
फक्कड़- फुफवा को हॉस्पिटल में भर्ती करना पड़ा | डॉक्टर देखते ही बोला , शरीर सही रहे तभी व्रत रखा करे पंडित जी, अगर एक दिन भी देर होता तो यहाँ की जगह कहीं और जगह होते!
(अब फक्कड़ बात मनसौखी को विस्तार से सुनाता है)
डाक्टर- पंडित जी आप बेहद कमजोर गए है आपकी किडनी फेल होने ही वाली थी तभी आ बैठे है |
पंडित- डाक्टर साहब शुभ शुभ बोलिये
डाक्टर- मेरे बोलने का क्या मतलब, अब आगे बताये सीधा मतलब खड़ा जाना चाहेंगे या लेटे लेटे!
पंडित- दिख नहीं रहा है डॉक्टर साहेब
डाक्टर- आप बेहद कमजोर हो चुके है अगर अपनी जान प्यारी है तो आज से नहीं अभी से ही मांसाहारी भोजन करना होगा
( ये सुनते ही तपाक से पंडित जी बोल उठते है)
पंडित-हम मर जाएंगे लेकिन ये सब नहीं खाएंगे
(ये बात बगल में बैठी पंडिताईन सुनते ही तपाक से बोल उठीं )
पंडिताईन- अब चुप भी रहिये , आगे एक शब्द न बोलिये, (डाक्टर की और देखकर) डाक्टर साहेब जो बोलिये हम इनको खिलाएंगे
(फक्कड़ बाबा भी बगल में बैठे थे सो बोल उठे)
फक्कड़- बुआ आप सही बोल रही है, अरे भाई जान रहेगा तभी तो पूजा पाठ होगा, जब बांस नहीं रहेगा तो बासुरी कैसे बजेगा। ..... फूफा जी शास्त्र कहता है की जान बचाने के लिए झूठ का सहारा लेना पड़े तो ले लेना चाहिए और ये तो फुफ्फा जी खाने की बात है|
पंडिताईन- पंडित जी आपको तो सिर्फ भगवान् से प्यार है हमसे क्या मतलब !!!
( पंडिताईन रोने लगाती है परन्तु पंडित जी पर कोई असर नहीं दिखा )
फक्कड़- अब तो फूफा जी मान जाइये
( तभी फक्कड़ डाक्टर की ओर देख कर पूछता है )
फक्कड़- डाक्टर साहब कोई दूसरा उपाए बताये जिससे की फूफा जी की चुरकी रह जाए और जनेऊ दूषित न हो
पंडिताईन- देखिये न! डाक्टर साहेब , पांच साल के बच्चे की तरह जिद किये है
डॉक्टर- देखिये कम से कम इनको अंडा तो खाना ही पडेगा वरन इनको ले जाइये
फक्कड़- फूफा जी बुआ की बात मान जाइये | आप देवी माँ के लिए व्रत रखते है ये तो आपके लिए व्रत रखती है न!
पंडित- बकवास बंद कर (गुस्से में )
जब पंडित जी पर कोई बात का असर तभी फक्कड़ अपना बहुरंगी दिमाग लगाया
(फक्कड़ पंडित जी के कान में धीरे से बोलता है )
फक्कड़- फूफा जी, आपका इलाज अछूत डॉक्टर कर रहा है, जल्दी से हाँ भर दीजिये वरना आपकी पंडिताई यही की यहीं रह जाएगी
अब तो ये सुनते ही पंडित जी धीरे से बोले
पंडित- हे राम राम, हम अंडा खा लेंगे फक्कड़, लेकिन जल्दी से घर ले चलो
(पंडित जी की ये बात सुनते ही फक्कड़ की अंतरात्मा की आवाज़ बोल उठा )
फक्कड़- डाक्टर साहेब ये मरे या जिए, आप दवा लिख दीजिये | ये नहीं खाने का कसम खाएं है तब हम लोग यहाँ क्यों रुके ....
फक्कड़ थोड़ा रुआब में बोला - आदमी की बात आदमी सुनेगा न! सैतान थोड़े ही सुनेगा
पंडित जी ये सुनते की लाल पीला होने लगे पंडित जी बेड से उठने की कोसिस किये लेकिन फक्कड़ उनको जबरदस्ती सोला देता है
डॉक्टर- ठीक है आगे भगवान् ही इनकी रक्षा करेंगे इनको लेते जाए
( पंडिताईन ये सुनते ही फफक फफक कर दहाड़ मारने लगी )
फक्कड़ डाक्टर साहब के पीछे पीछे चल देता है फक्कड़ डाक्टर को देखकर आँख मारता है
डाक्टर- क्या हुआ ?
फक्कड़- डाक्टर साहब दिमागी रोगी का इलाज दिमाग से किया जाता है
डॉक्टर- मतलब
(फक्कड़ डाक्टर के कान में धीरे से सारी बात बता देता है )
डाक्टर- वाह! क्या बात है (खूब जोरो से हसने लगते है)
इस तरह फक्कड़ पूरी बात मनसौखी बता देता है
मनसौखी- अरे फक्कड़ भाई ! क्या सही में डॉक्टर अछूत थे
फक्कड़- नहीं रे मनसौखी, वो डॉटर तिवारी थे
मनसौखी- फक्कड तुम्हरे दिमाग का खेल भगवान् ही जानते है
फक्कड़- अरे नहीं करते तो फुफवा आज फ्रेम में टंगा होता
मनसौखी- फक्कड़ भाई, अब तो फूफा तुम लोगों को गरियाते नहीं है न !
फक्कड़- अरे फक्कड़ फुफ्फा को नहीं जानते , अब हमारा फुफवा पंडिताईन के डर से सब्जी की झोरा में मुर्गा लाते है वो भी अंडे के साथ |
मनसौखी- अरे ओये तोरी तो , फक्कड़ भाई तुम जो न कराओ फुफवा से
फक्कड़- अब बात समझ गए न! पहिले वाली बात अब कहाँ , अब तो क्या साधु और क्या स्वाधू .... वचन जाये तो जाये, पर जान न जाये

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