आज़ाद देश ढहाता विरासत 

               नेहरा नामक गाँव में 79 वर्षीय रामू काका रहते थे चूंकि गाँव में सबसे ज्यादा उम्र के थे तो उनके समकक्षी लोग काका कहते थे रामू काका अपने गाँव के इकलौते ऐसै आदमी थे कि जो इतिहास के बहुत बड़े जानकार थे। कब, कौन और कहाँ सबकी जानकारी रखते थे। रामू काका का घर नहीं था बल्कि हवेली था। रामू काका सम्पन्न परिवार के थे परन्तु उनके जीवन में अनेक अप्रिय घटना इतना ज्यादा घटी कि आज की तारीख में उस हवेली में सिर्फ रामू काका ही रह गये थे।

                    रामू काका की हवेली पर सरकार की नजर पड़ी। सरकारी खाते में वो जमीन सरकारी थी जिसपर रामू काका के पहले छ: पीढ़ियां रह चुकी थी सातवां पीढ़ी में स्वयं रामू काका ही बचे थे। रास्ते का चौडीकरण होने की बात पूरे गांव में फैली थी। 

                       रामू काका समझ ही नहीं पा रहे थे की पुश्तैनी ज़मीन आखिर कैसे सरकारी हो गयी ये बात रामू काका को हजम नहीं हो रहा था 

 रामू काका इसकी जानकारी लेने जब सरकारी विभागों में गए लेकिन कोई समाधान नहीं मिल रहा था।  थक हार कर एक वकील से मिले और अपनी परेशानी बताये। 

वकील- बाबा आपके पास कोई कागज वगैरह है तो हम आपके घर को बचा सकते है 

रामू काका- साहब हमारे पूर्वज यहाँ रहते आये कितनी पीढ़ी रही ये हम कैसे बताये।  साहब हम ठहरे गावं का अनपढ़ आदमी।  पेपर वेपर का हाल हम नहीं जानते !!!

वकील- बाबा बगैर पेपर का केस कैसे बनेगा कोई तो कागज चाहिए ही 

रामू काका- साहब कोई दूसरा रास्ता हमें बताये जिससे की मेरा घर बच जाये। 

(वकील साहब कुछ देर सोचते रहे की आज ग्राहक अच्छा मिला है इससे कमाया जा सकता है फिर उसने एक चल चली ) 

वकील-  बाबा आप ठहरो, मै जज से मिल कर आता हूँ देखता हूँ क्या हो सकता है !

रामूकाका वकील के इन्तजार में घंटो बैठे रहे जब कचहरी बंद होने का समय आया तभी वकील साहेब आ गए।  तब तक रामूकाका इन्तजार करते रहे। 

वकील- बाबा आपके काम के लिए क्या बताये ! (थके आवाज़ में )

रामूकाका -वकील साहब कुछ हुआ क्या?

वकील- (पसीना पोछते हुए) बहुत कोशिश के बाद किसी तरह मिले है जज साहब से 

रामूकाका - अच्छा 

वकील- पेशकार को खर्चा देना पड़ा तब जाकर जज साहब सुनाने को राजी हुए 

रामूकाका - साहब मेरा घर बच जायेगा न !!! (पूरी उत्सुकता से)

वकील- आपके काम का जज साहब बोले है बहुत खर्चा करना होगा तभी संभव है!!!

रामूकाका- साहब जो भी खर्चा होगा हम सब देंगे पर हमारा घर बचा दीजिये साहब बड़ी मेहरबानी होगी 

वकील- बाबा हम कोशिश कर सकते है, आज कल पैसे का ही तो खेल है बाबा

(रामूकाका अपने थैले से १०० का ५ नोट वकील को देने के लिए आगे बढ़ा दिए।  वकील साहब को ज्यादा पैसे का लालच था  इसलिए वो पैसा लेते ही बनावटी ढंग से  भड़क गए) 

वकील-ये क्या बाबा इतना कम तो हम फीस भी नहीं लेते!!! आपके काम के लिए घंटो लगे रहे और आप हमको ये पांच सौ रुपये थमा रहे है। 

रामूकाका- साहब अभी तो मेरे पास जो था वो दे दिए 

वकील- बाबा अपना काम किसी और से करा लीजिये (मुंशी की तरफ देखकर वकील साहब बोले )

वकील- मुंशी जी अब आप ही बताइये कितना पैरवी करना पड़ा।  इनके काम के लिए पेशकर को हजारों दे दिए

(तभी मुंशी बाबा की तरफ देश बोला ) 

मुंशी- अरे बाबा, ये कचहरी है कोई मंदिर नहीं ! जितना मन किया चढ़ावा दिए और निकलते बने। 

वकील- मुंशी जी जाइये और इनके फाइल को बंद करा दीजिये ये अपना केस खुद ही देखे 

रामूकाका- वकील साहब नाराज़ न होइए 

(रामू काका अपने कमर की कसी धोती से कुछ रुपये और निकल कर देने लगे )

वकील- (नोट गिनाते हुए) बाबा अगर आपको अपना घर बचाना है तो लाखो रुपये खर्च होगा। हर सुनवायी पर डेढ़ हजार खर्च होगा। 

मुंशी- साहब बाबा गरीब है डेढ़ हजार के अलावा कुछ भी न लीजियेगा (बाबा की तरफ से बोलते हुए) 

वकील- मुंशी जी आप कहते है तो ठीक है वरना सरकारी काम में बाधा डालने पर हमारी वकालत खतरे में पढ़ जाएगी। 

रामू काका - साहब ऐसा मत कहिये आगे से कोई गलती नहीं होगा। 

(रामू काका इस तरह कचहरी का चक्कर काटते रहे एक दिन उनके घर पर सरकारी नोटिस चस्पा मिला जिसमे एक हफ्ते का समय दिया गया था) 

( जब से नोटिस चस्पा था रामू काका बहुत परेशान हो उठे।  रात कटने का इन्तजार करते रहे।  इन्तजार की रात लम्बी लगने लगी रामू काका को नींद हीं नहीं लगी )

  (रामू काका बिना कुछ खाये पिए सुबहे सुबहे कचहरी भागते चले गए।  कचहरी परिसर पर सन्नाटा था।  रामू काका वही बैठे रहे दोपहर का ग्यारह बज गए थे कोई नज़र नहीं आ रहा था तभी एक ठेले वाले से पूछे )

रामू काका- भैया आज वकील साहेब नहीं आएंगे क्या ?

ठेले वाला - बाबा आज छुट्टी है न ! आज के दिन कचहरी बंद रहता है न बाबा 

 (दरअसल उस दिन रविवार था परिसर में सन्नाटा होना लाज़िमी था सो रामू काका घर को वापस चल पड़े रामूकाका को समझ में नहीं आ रहा था की कैसे और किससे कहूं की हमारे इस घर में कई पीढ़िया रह चुकी है यही आखिरी निशानी है। रामू काका उदास मन से यही सोचते सोचते घर आ गए ) 

दूसरे दिन फिर रामू काका इस उम्मीद से कचहरी गए की कोई काम हो जाये। रामू काका को देखते ही वकील का चेहरा खिल उठा और बिना रुके ही बोला )


वकील- आओ आओ बाबा  हम आज आपके ही बारे में सोच रहे थे की आप सामने आ ही गए।  काका मैं आपकी फाइल जज साहब के पास न ले जा कर डीएम साहेब के पास ले जाता हूँ।  आपकी नयी फाइल बनानी होगी इसके लिए आपको कुछ पैसे देने होंगे ...

रामू काका - हाँ साहेब 

(इस तरह रामू काका पांच सौ के दस नोट वकील साहेब की तरफ बढ़ा दिए। )

वकील- बाबा आपको इतनी रुपये अभी देने है ये रखिये  

(वकील साहेब हमदर्दी दिखते हुए एक नोट रख कर सभी नोट वापस कर दिए।  रामू काका बहुत ही भोले भले इन्शान थे वो आज की क्रूर दुनिया से वाकिफ नहीं थे। बहरहाल वकील साहेब रामू काका का नयी फाइल बनवाने के लिए मुंशी को देकर जल्द से जल्द आने को कहे।  मुंशी बहुत ही कम समय में फाइल तैयार करवाकर ले आता आता है और वकील साहेब उस फाइल को लेकर डीएम के पास लेकर चल देते है उनके साथ साथ रामू काका भी देते है| डीएम कार्यालय पर भरी भीड़ देख कर रामू काका का पैर ठिठक जाता है और उस भीड़ में खो जाते है। घंटे देर बाद किसी तरह रामू काका वकील के टेबल के पास पहुंचते है देखते है वकील साहेब नहीं है।  रामू काका वही इंतजार करते रहे काफी देर बाद वकील साहेब आते है और आते ही.... )

वकील साहेब - बाबा आपका काम होना बहुत मुश्किल है आपके काम के लिए दो लाख रुपये मांग रहे है बताइये आप इतना रुपये कहाँ से देंगे।

रामू काका - मेरे जैसे गरीब के पास इतना पैसा नहीं है साहेब। .... दो लाख तो आज तक देखा ही नहीं। ..... कुछ पैसे है 

(इतना कहते हुए रामू काका अपनी थैली से करीब पांच सौ के १२-१३ नोट वकील को देते हुए बोले। ...  )  

रामू काका - साहेब जो है सब दे देता हूँ जब घर ही नहीं बचेगा तो ये रुपये किस काम के....(रामू काका की आंखे भरी हुयी थी )

(रामू काका पुरे पैसे देकर चल दिए ये देख कर वकील साहेब को अपने किये पर बहुत ग्लानि हुयी। )      

दो दिन बाद 

सुबह सुबह बुलडोज़र के लिए भारी पुलिस दल के साथ प्रशासनिक अधिकारी रामू काका के घर आ धमके और रामू काका को जबरदस्ती घर से बहार करते हुए घर गिराने का आर्डर दे देते है।  बेबस रामू काका कपकंपी हाथ जोड़कर बोले-

रामू काका - साहब हमारे दादा बाप के हाथ से बनाया घर था। 

(रामू काका रोते हूए अपने गिरे घर की एक ईट उठाकर बोले )

रामू काका - साहब इस ईट को अपने सर पर तब ढोते थे जब हम महज पांच साल के थे! 

(दारोगा साहब रामू काका की बात खामोशी से सर झुका कर सुनते रहे तभी रामू काका दारोगा राम सिंह का पैर पकड़ लिये और लिपटकर बोले साहब)

रामू काका - हमारा खानदान तो जनमजात गरीब है साहब। 

( रोते रोते मुंह से लार चुने लगा रामू काका बहुत ही संवेदनशील बाबा थे लेकिन उस दिन उनकी पीड़ा देखकर पास खड़े डीएम रहमत खान अपना सर घुमा लिए लेकिन वहाँ से हिल नहीं सकते थे क्योंकि रामू काका का घर सरकारी कागज पर अवैध यानि सरकारी जमीन पर बना था। जब रामू काका के प्रश्नों का जबाब दारोगा साहेब नहीं दे सके तो पास खड़े डीएम रहमत खान के पैर पर अपनी पगड़ी रखते हुए पूर्वजों की निशानी छोड़ने का रोते बिलखते गुहार लगाते रहें। पर लाचार नज़रें रोकने में असमर्थ थी। तभी हवलदार नगीना कड़क आवाज में बोला-

हवलदार - ए बुड्ढे बहुत देर से बक बक करता है चल हट वहाँ से वरना (कहते हुए नगीना ने रामू काका को एक डंडा जड़ देता है। डंडा लगते ही रामू काका जोर से चीखे, उनकी चीख से डीएम और दारोगा की रुहे कांप गयी।

ये देख दारोगा ने हवलदार नगीना को जोरदार थप्पड़ जड़ दिये और चीखकर बोले

दारोगा- ये कौन है क्या तू जानता है? 

ये बात सुनते ही डीएम हक्काबक्का हो गये। लेकिन जेसीबी से रामू काका का घर टूटता जा रहा था।

डीएम भारी भीड़ में रामू काका को सहारा देकर उठाते है। हाथ जोड़कर बोलते है काका हमारे हाथ कानून से बंधे है। 

पार्श्व गीत

नाही रहल घरवा हो sss, ना ही रहल अब वनवा हो...,

गांधी तोहरे देश में ssss हमनी के कहवाॅ हो-2,

एहनी के खातिर गारी, लाठी, 

गोली हंसत खेलत खयली हो, 

आपन आपन खूनवा 

माई चरनीया में शान से चढईली हो,  

आजू  कईसन कईसन गारी लाठी

ये ही खातिर तू आजादी दिलवईलअ हो गांधी

जेलवा के जरल रोटी, आजादी के लाठी खईले, 

आजू के यही दिनवा देखलहले हो। देशवा आजाद भईले,    ....

नाही रहल घरवा हो sss, ना ही रहल अब वनवा हो...,.. 

(अब न घर रहा और न ही वन रहा बताओ गांधीजी हम कहां के).... । 

रामू काका जाते जाते दिल की बात कहते जा रहे थे 

रामू काका रोते हुए दोनों पैर टेक कर बैठे ही थे एकाएक शीशा टूटने की जोरदार आवाज आई शीशे की आवाज सुनते ही रामू काका दहाड़ मारे-

 रामू काका- परबतिया अरे परबतिया,  हमरे परबतिया को छोड़ो साहेब। 

(रामू काका घर की ओर दौड़ पड़े रामू काका के पीछे पीछे डीएम, दारोगा, मयफोर्स दौड़ पड़ी लेकिन रामू काका के फूर्ती के सामने नहीं टिक पाये। जब तक लोग समझते तबतक रामू काका जेसीबी के अगले भाग के नीचे आगये, परबतिया उनकी पत्नी थी जो गंभीर बीमारी की वजह से स्वर्गवास हो चुका था। परबतिया का फोटो टंगा था जो परबतिया का आखिर निशानी था।

 रामू काका टूटे शीशे को उठाकर सीने से लगाकर बोले 

रामू काका- परबतिया हम कवन पाप किये रहे, बोल न परबतिया, अरे बोलत काहे नाही हो। 

 तभी सुरक्षाकर्मी रामू काका को पकड़ने की कोशिश किये तो उन्होंने हाथ जोड़कर बोले-)

रामू काका - आज रामू नहीं, रामू की आत्मा रो रही है रामू के बाप दादा की आत्मा बोल रही है ये देश अगर मेरा नहीं तो... तुम सब...का भी नहीं!!! ये जमीन बुद्ध का नहीं तो तुम जैसे कीड़ो का भी नहीं!!! हम आवत है परबतिया परबतिया हम आवत है।

(जैसे ही रामू काका मुड़े थे कि तभी घर का बड़ा मलबा रामू काका पर आ गिरा। रामू काका मलबे में दब गये। रामू काका के ऊपर मलबा गिरता देख डीएम दारोगा दौड़ पड़े आनन फानन जेसीबी मलबा हटाने लगा लेकिन रामू काका अपने परबतिया के पास हमेशा के लिए चले गये।)

       रामू काका का वो घर नहीं बल्कि पूर्वजों का मंदिर था।  अपने मंदिर को टूटते कौन देख सकता है जिसमें कई पीढ़ियों की आत्मा निवास करती है। हमरी आन बान शान सब तो इसी घर में रहता है।    
      अपना एक सुन्दर घर होने का बहुत बड़ा सपना कौन नहीं देखता सभी देखते है।  समाज में हर तबके के लोग है।  आज जितनी आबादी है आज़ादी के समय आधे से भी कम थी रोजगार नहीं थे गरीबी चरम पर थी खेत से ज्यादा जंगल थे।  मेहनत कर बंजर और जंगल को खेती युक्त ज़मीं तैयार किया गया।  सरकार ने उपज बढ़ाने और लोगो घर को घर बसाने के लिए ज़मीं दे दी ताकि देश में खुशहाली आये। 
      जिस घर में सैकड़ो साल से अनेक आत्मा वास कर रही थी आखिर वो घर सरकारी कागज़ पर बंजर या सरकारी ज़मीन कैसे हो गया ?    
      आज हमारे देश में लाखों ऐसे लोग है जिनका घर नहीं है वो खानाबदोश की ज़िन्दगी जीने को मजबूर है।  रामू काका का वो घर नहीं था बल्कि मंदिर था रामू काका अपने मंदिर को टूटता नहीं देख सकते थे। रामू काका की मौत भी आयी और विरासत को अपने आगोश में हमेशा के लिए लेती चली गयी। 




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